Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 2 : 14
पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 2 : 14
कहरा : 2 : 14
प्रेम बाण एक सतगुरू दीन्हों , गाढ़ो तीर कमाना हो !
शब्द अर्थ :
सतगुरू = सत्यवादी , समतावादी , सदाचार वादी गुरू ! प्रेम बाण = प्रेम का धर्म ! दीन्हों = उपदेश देना ! गाढ़ो = बहुत श्रेष्ठ ग्यान , विद्दया !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे सत गुरू की बात करते हुवे बातते है की जीस प्रकार धर्म और अधर्म होता है संस्कृती और विकृती होती है ग्यान और अग्यान होता है विद्दया और अविद्दया होती है उसी प्रकार धर्म अधर्म के मान्यता विचार नुसार साधु और शैतान आचार्य , गुरू होते है ! सच्चा ग्यान रखने वाले सतगुरू भेदभाव जाती वर्ण वाद नही मानते , वर्ण वादी वेद और अस्पृष्यता वादी छुवाछुत वादी मनुस्मृती नही मनाते इनको मानने वाले कभी भी सतगुरू नही होते इस लिये कोई भी ब्राह्मण , जनेऊधारी पंडित पूजारी न कभी सच्चा साधु संत महत्मा गुरू होता है इन्हे छादमी , बनावटी गुरू घंटाल कहा जाता है जैसे द्रोंणाचार्य , वैदिक शंकारचार्य आदी ! इनके चक्कर मे न पडने की शिक्षा परमात्मा कबीर यहाँ देते है जैसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अधर्म विकृती है वैसे ही इनके पंडे पूजारी आचार्य गुरू ये सब नकली है सत्य से ये डरते है , असत्य ही इनका धर्म है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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