Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 2 : 15

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 2 : 15

कहरा : 2 : 15

दास कबीर कीन्ह यह कहरा , महरा माँहि समाना हो ! 

शब्द अर्थ : 

दास कबीर = स्वयम कबीर परमात्मा ! कीन्ह यह कहरा = यह कथन का पद स्वयं कबीर साहेब निर्मित स्वनुभव है ! महरा = मेरा , मुझ मे ! समाना = समाविस्ट होना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा दो के इस अन्तिम पद मे कहरा की निर्मिती स्वयं कबीर साहेब ने की है बताते है ! कहरा यानी स्वनभूती कथानी ! इसमे कबीर साहेब सब का परामर्ष लेते हुवे कहते है इसमे जो बताया है वह सत्य धर्म है , मुलभारतिय शिल सदाचार का धर्म है और विदेशी युरेशियन वैदिक धर्म को अधर्म और विकृती घोशित किया गया है , वर्ण जाती अस्पृष्यता विषमाता ऊचनीच भेदभाव भरा ब्राह्मण धर्म मानव अहितकारी , निन्दनिय और त्याज्ज है यही उपदेश अंतता परमात्मा कबीर यहाँ करते है !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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