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Showing posts from April, 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 3 : 1

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पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 3 : 1 कहरा : 3 : 1 राम नाम का सेवहु बीरा , दूरि नहिं दूरि आशा हो !  शब्द अर्थ :  राम : निराकार निर्गुण चेतन राम ! नाम = चिंतन मनन ! का = उसका ! बीरा = नागवेल का पत्ता , लक्ष ! दूरि = दुसारी ! नाहिं = नही ! दूरि = दूर ! आशा = निर्वांण लक्ष !  प्रग्या बोध :  परमात्मा कबीर कहरा 3 के प्रथम पद मे स्पस्ट कहते है की वे निर्गुण निराकार चेतन तत्व राम जो अमर अजर सदा के लिये है जो इस चराचर शृष्टी एकमात्र निर्माता चालक मालक परमात्मा है जो सभी मे है और सभी उसी मे समाहित है उस एकमात्र पर्मेश्वर का सदा दिन रात उठते बैठते चिंतन मनन सु सुमरण करते रहते है वही उनका देह , भोजन , खानपान और लक्ष है अन्य कोई नही !  सत्य शिव सुन्दर चेतन तत्व राम को समझना और सहज सरल निर्विकार जीवन जी कर निर्वांण पद जो निराकार निर्गुण चेतन राम का स्वरूप है उसे पाना ही मानव ज़िवन का परम लक्ष है ज़िसे धर्मात्मा कबिर पाकर परम...

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 2 : 15

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पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 2 : 15 कहरा : 2 : 15 दास कबीर कीन्ह यह कहरा , महरा माँहि समाना हो !  शब्द अर्थ :  दास कबीर = स्वयम कबीर परमात्मा ! कीन्ह यह कहरा = यह कथन का पद स्वयं कबीर साहेब निर्मित स्वनुभव है ! महरा = मेरा , मुझ मे ! समाना = समाविस्ट होना !  प्रग्या बोध :  परमात्मा कबीर कहरा दो के इस अन्तिम पद मे कहरा की निर्मिती स्वयं कबीर साहेब ने की है बताते है ! कहरा यानी स्वनभूती कथानी ! इसमे कबीर साहेब सब का परामर्ष लेते हुवे कहते है इसमे जो बताया है वह सत्य धर्म है , मुलभारतिय शिल सदाचार का धर्म है और विदेशी युरेशियन वैदिक धर्म को अधर्म और विकृती घोशित किया गया है , वर्ण जाती अस्पृष्यता विषमाता ऊचनीच भेदभाव भरा ब्राह्मण धर्म मानव अहितकारी , निन्दनिय और त्याज्ज है यही उपदेश अंतता परमात्मा कबीर यहाँ करते है ! धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस  दौलतराम  जगतगुरू नरसिंह मुलभारती  मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ...

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 2 : 14

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पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 2 : 14 कहरा : 2 : 14 प्रेम बाण एक सतगुरू दीन्हों , गाढ़ो तीर कमाना हो !  शब्द अर्थ :  सतगुरू = सत्यवादी , समतावादी , सदाचार वादी गुरू ! प्रेम बाण = प्रेम का धर्म ! दीन्हों = उपदेश देना ! गाढ़ो = बहुत श्रेष्ठ ग्यान , विद्दया !  प्रग्या बोध :  परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे सत गुरू की बात करते हुवे बातते है की जीस प्रकार धर्म और अधर्म होता है संस्कृती और विकृती होती है ग्यान और अग्यान होता है विद्दया और अविद्दया होती है उसी प्रकार धर्म अधर्म के मान्यता विचार नुसार साधु और शैतान आचार्य , गुरू होते है ! सच्चा ग्यान रखने वाले सतगुरू भेदभाव जाती वर्ण वाद नही मानते , वर्ण वादी वेद और अस्पृष्यता वादी छुवाछुत वादी मनुस्मृती नही मनाते इनको मानने वाले कभी भी सतगुरू नही होते इस लिये कोई भी ब्राह्मण , जनेऊधारी पंडित पूजारी न कभी सच्चा साधु संत महत्मा गुरू होता है इन्हे छादमी , बनावटी गुरू घंटाल कहा जाता है ...