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Pavitra Bijak : Pragya Bodh Ramaini : 68 Swadharm Mulbhartiya Hindhudharm !

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#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ६८ : स्वधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही सुख सिंधू ! #रमैनी : ६८ तेहि वियोगते भयउ अनाथ * परेउ कुंज बन पावै न पंथा  वेदो नकल कहै जो जाने * जो समजै सो भलो न माने  नटवट विद्या खेलै सब घट माहीं * तेहि गुण को ठाकुर भल मानै  उहै जो खेलै सब घट माहीं * दुसर कै कुछ लेखा नाही  भलो पोच जो अवसर आबै * कैसहु कै जन पूरा पावै  #साखी :  जेकर शर तेहि लागे, सोई जानेगा पीर / लागे तो भागे नहीं, सुख सिन्धु निहार कबीर // ६८ // #शब्द_अर्थ :  तेहि = चेतन राम , स्वरूप ! वियोग = विस्मरण! कुंजवन = घना जंगल ! खानी = वाणी जाल ! नकल = बनवटी ! नटवट = नाटक का सुत्रधार ! विद्या = कला ! लेखा = गिनती , महत्व ! भलो = अच्छा ! पोच = बुरा , दुखद ! कैसहु कै = एनकेन , किसी प्रकार ! जन = साधक , सामान्य ज्ञान ! पूरा पावै = संतोष ! शर = बाण , विवेक ! #प्रज्ञा_बोध :  धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों अपने सुखदाई स्वधर्म ,सत्य हिंदूधर्म, मूलभारतीय हिन्दूधर्म को छोड़ कर तुम गहरे अंधकार के विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के घने और डरावने जंगल में फस ग...